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What’s Exactly Is The Winter?||आखिरी शीत ऋतु अथवा सर्दी क्या होती है और क्यों आती है?!|| हमे ठण्ड क्यों लगती है ?!|| An Amazing and Interesting Fact About Winter ||

●What’s Exactly Is The Winter?●

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उत्तर भारत में इस समय हाड गला देने वाली शीत लहर चल रही है, तो आज का टॉपिक “ठण्ड” को ही पकड लेते हैं। आखिरी शीत ऋतु अथवा सर्दी क्या होती है और क्यों आती है।

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आपको शायद आश्चर्य हो कि शीत ऋतु के दौरान हम सूर्य के सबसे नजदीक होते हैं। सूर्य से अधिकतम दूरी से निकटता का यह अंतर सिर्फ 50 लाख किलोमीटर होता है, पर जो भी है, अंतर तो है ही, बेशक इसका कोई प्रभाव ऋतुओं पर नहीं होता। काफी लोग यह भी जानते हैं कि पृथ्वी के अपने अक्ष पर लगभग 23 डिग्री झुके होने के कारण ऋतुओं में बदलाव होता है। पर मुझे लगता है कि बहुत से लोग इस अक्ष के झुके होने के फंडे को भी ठीक से विजुलाइज नहीं कर पाते। इसलिए, आज मैं सरलतम शब्दों में, दूसरी तस्वीर के सहारे इस विषय को स्पष्ट करना चाहूँगा।

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हम सब जानते हैं कि सूर्य आकाश में एक स्थान पर उदित होता है, फिर ARC बनाता हुआ पश्चिम में अस्त होता है। अब आप साल भर रोज सूर्य के पथ का चार्ट बनाएं तो दो बातें आपको ज्ञात होंगी।

पहली – सूर्य के उदय और अस्त होने का स्थान प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा बदलता रहता है।

दूसरी – सूर्य द्वारा बनाई गयी “आर्क” 21 जून को सबसे बड़ी होती है, फिर धीरे-धीरे छोटी होती है। 21 दिसम्बर को ये आर्क न्यूनतम आकार की होती है, और 22 दिसम्बर से वापस बड़े होने लगती है। जो तारीखें मैंने लिखी हैं, उसमें एक दिन प्लस या माइनस हो सकता है। उसका कारण पृथ्वी का “प्रीसिजन अथवा पुरस्सरण” है। फिलहाल विषयांतर न हो, इसलिए इसे छोड़ देते हैं।

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अब कॉमन-सेंस वाली बात है कि जब आर्क बड़ी होगी, इसका अर्थ है कि सूर्य ज्यादा समय के लिए आसमान में रहेगा। यही कारण है कि 21 जून वर्ष का सबसे लंबा और सबसे गर्म दिन होता है। और 21 दिसम्बर सबसे छोटा और सबसे ठंडा। और यही कारण है कि 21 दिसम्बर को सूर्य के उत्तरायण प्रवेश के बाद दिन लम्बे और रातें छोटी होने लगती हैं।

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धातव्य रहे कि मैं जो कह रहा हूँ, वह पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध यानी नार्थ हेमिस्फियर पर लागू होता है, जिसमें भारत भी आता है। दक्षिणी गोलार्ध, जैसे ऑस्ट्रेलिया इत्यादि के लिए इस पिक्चर को उलटा कर दीजिये, अर्थात जब हमारे यहाँ सर्दी तो वहां गर्मी होगी। इसमें मायने यह भी रखता है कि कौन सा देश मैप में कहाँ पर है। वर्ष के किसी भी समय भूमध्य रेखा पर सूर्य सबसे ज्यादा समय के लिए आसमान में रहता है। इसलिए उत्तरी भारत से ध्रुवों की तरफ बढ़ेंगे तो नक़्शे में भारत से ऊपर हर देश में सर्दी का लेवल बढ़ता जाएगा। पर उत्तर भारत से नीचे की ओर, अर्थात दक्षिण भारत से होते हुए भूमध्य रेखा की ओर बढ़ें, तो गर्मी बढती जाएगी।

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अब आप कहेंगे कि सूर्य आसमान में दो घंटा ज्यादा चमक गया अथवा दो घंटा कम, इससे इतनी भयंकर सर्दी-गर्मी का अंतर हो जायेगा?

सच कहूँ तो पृथ्वी की सर्दी-गर्मी में सूर्य का बहुत रोल है ही नहीं। वातावरण में कितनी गर्मी होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हवा में कितना इन्फ्रारेड रेडिएशन मौजूद है।

……. सूर्य की ज्यादातर ऊर्जा तो पृथ्वी से टकरा कर बैरंग लौट जाती है, पर कार्बनडाईऑक्साइड, जलवाष्प और मीथेन जैसे बड़े अणु सूर्य की ही बड़ी किरणों (इन्फ्रारेड) को पृथ्वी पर ही रोक लेते हैं इसलिए वातावरण में गर्मी बनी रहती है।

यही कारण है कि पहाड़ों पर हवा कम सघन होने के कारण ठंड होती है क्यूंकि जितनी ज्यादा हवा होगी, वातावरण के गर्मी होल्ड करने की क्षमता उतनी ही ज्यादा होगी। समीकरणों से हवा को माइनस कर के सूर्य को ही अकाउंट में लिया जाए तो प्राप्त उत्तर अनुसार पृथ्वी का औसत तापमान माइनस 15 डिग्री होना चाहिए, जो कि है नहीं, अन्यथा दुनिया भर के जलाशय, तालाब, नदियां और महासागर जम के बर्फ का ढेर बन जाते।

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पृथ्वी का वातावरण बेहद डायनामिक सिस्टम है। यह गर्मी को होल्ड तो कर पाता है, पर बेहद लम्बे समय के लिए नहीं, इसलिए इसे निरंतर सूर्य ऊर्जा की सप्लाई चाहिए। यही कारण है कि सूर्य के आसमान में एक-दो घंटे ज्यादा अथवा कम देर उपस्थित रहने के भी नाटकीय प्रभाव हो सकते हैं।

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एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि आपको ठंड लगती इसलिए है क्यूंकि आपके शरीर को कांस्टेंट 37 डिग्री ताप मेंटेन करना होता है, 37 ही क्यों? क्योंकि इस ताप पर ज्यादातर सूक्ष्मजीव-फंगी इत्यादि अपने-आप ही नष्ट जाते हैं। जो सूक्ष्मजीव ढीठ हैं, उनके लिए शरीर ज्वर के रूप में दो-तीन डिग्री ताप बढाने की जहमत भी उठाता है। कोल्ड-ब्लड वाले जीवों जैसे मछली, सरीसृप इत्यादि को यह जहमत उठाने की जरुरत नहीं होती। उनके शरीर का ताप वातावरण के अनुसार ऑटो-एडजस्ट हो जाता है।

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तो मैं बेसिकली कहना ये चाह रहा हूँ कि…

You feel cold, because you are hot inside, literally!

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And As Always

Thanks For Reading!!

– झकझकिया

लेख़क – विजय सिंह ठकुराय

साभार – विजय सिंह ठकुराय

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