aditya l1 mission
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भारत के इसरो द्वारा भेजे गये आदित्य-L1 मिशन में L1 का मतलब क्या होता है ?|| अन्तरिक्ष में 5 लंग्राज पॉइंट कहा कहा होते है ?||aditya L1 mission of bharat||

आइये, मिलकर एक ख्याली पुलाव पकाते हैं। पृथ्वी गोल है, पर चूंकि पृथ्वी की ग्रेविटी हमें अपनी और आकर्षित करती है, इस कारण गोल सतह से लुढ़क कर अंतरिक्ष में नहीं गिर जाते हैं। पर एक मिनट, अगर मैं पृथ्वी पर हूँ तो भी सूर्य की ग्रेविटी भी तो मुझे अपनी तरफ खींच रही होगी? बिलकुल, ऐसा है। पर चूँकि आप सूर्य के मुकाबले पृथ्वी के ज्यादा करीब हैं, इसलिए इस परिस्थिति में पृथ्वी की ग्रेविटी ज्यादा डोमिनेंट होगी।

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अब मान लेते हैं कि आप एक सीधी रेखा में, पृथ्वी से सूर्य की ओर सफ़र कर रहे हैं। जैसे-जैसे आप सूर्य की और बढ़ेंगे, वैसे-वैसे आप पर लगने वाली सूर्य की ग्रेविटी ज्यादा शक्तिशाली होती जायेगी, और शनैःशनैः पृथ्वी की ग्रेविटी कमजोर होती जायेगी। So far, So Good?

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अब इस यात्रा के दौरान, जाहिर तौर पर, एक समय अथवा बिंदु ऐसा आयेगा, जिस बिंदु पर आप पर लगने वाला पृथ्वी और सूर्य का गुरुत्व बल एक समान होगा। साधारण शब्दों में: इस बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी की ग्रेविटी एक-दूसरे को कैंसिल-आउट कर देंगी। इस बिंदु पर खड़े होने पर आप त्रिशंकु की तरह स्पेस में लटके रह जायेंगे – न इस पार के, न उस पार के – इस ख़ास बिंदु को “लंग्राज पॉइंट – 1” कहते हैं। यह बिंदु सूर्य और पृथ्वी के बीच में… पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर अन्तरिक्ष में स्थित है।

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एक-दूसरे का चक्कर लगा रहे किन्ही भी दो पिंडो के बीच, जैसे सूर्य-पृथ्वी, पृथ्वी-चन्द्र, इत्यादि के बीच अन्तरिक्ष में कुल 5 लंग्राज पॉइंट होते हैं, जहाँ एक पिंड दूसरे पिंड से 24.96 गुना भारी हो, तो पिंडो के बीच की ग्रेविटी और सेंट्रीफ्यूगल फ़ोर्स कुछ इस तरह कमाल दिखाती हैं कि इन लंग्राज पॉइंट्स पर स्थित चीज आंशिक या पूरी तरह स्थिर होती है। अर्थात, लंग्राज पॉइंट पर मौजूद चीज को अपनी जगह पर बने रहने के लिए राकेट बूस्टर फायर करने की जरुरत या तो बिलकुल नहीं होती, अथवा आंशिक रूप से होती है। इसे मैं थोड़ा और सरल बनाता हूँ।

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पहले लंग्राज पॉइंट की बात हमनें कर ली, जो पृथ्वी और सूर्य के बीच है। दूसरा लंग्राज पॉइंट पृथ्वी के “इस पार” और तीसरा लंग्राज पॉइंट सूर्य के “उस पार” मौजूद है। ये तीनों पॉइंट आंशिक रूप से स्थिर हैं। अर्थात, यहाँ मौजूद सेटेलाईट लगभग 23 दिन तक अपनी जगह पर बने रह सकते हैं। उसके बाद थोड़े-बहुत राकेट फायर कर अपनी पूर्वस्थिति में पहुँच सकते हैं।

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लंग्राज पॉइंट 4 और 5 स्पेस में वहां हैं जिस जगह पर सूर्य और पृथ्वी से बनाए गये 60 डिग्री के कोण एक-दूसरे को काटते हैं। ये दोनों बिंदु पूरी तरह स्थिर हैं। अर्थात, अगर आप इन बिन्दुओं पर मौजूद हैं, और मैं आपको धक्का भी दे दूँ तो भी वापस अपनी जगह पर आ जायेंगे। इन बिन्दुओं की तुलना आप चारों दिशाओं में पर्वतों से घिरी एक घाटी से कर सकते हैं जहाँ जाने के लिए लेफ्ट-राईट-आगे-पीछे जैसा कोई आप्शन उपलब्ध ही नहीं है।

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ज़रा सोचिये, ये लग्रांज पॉइंट मनुष्य के अन्तरिक्ष में विस्तार के सन्दर्भ में कितना सामरिक महत्त्व रखते हैं। यहाँ आप बिना ईंधन की चिंता किये रहने योग्य मानव बस्तियां बना कर छोड़ सकते हैं। आवश्यक लौह अयस्क अथवा अन्य पदार्थों की पूर्ति हेतु माइनिंग के लिए पकडे लिए उल्का खण्डों को इन पॉइंट्स पर छोड़ सकते हैं, बिना यह चिंता किये कि वे अन्तरिक्ष में कहीं भटक जायेंगे। सोचिये, कि ईंधन को पी लेने वाली ग्रेविटी अथवा वायु के अभाव में इन लग्रांज पॉइंट्स से भविष्य के स्पेस-मिशन भेजना कितना आसान होगा।

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सोचिये, शायद एक वक़्त ऐसा आये जब हमनें ब्रह्माण्ड के अनेक सोलर सिस्टम के लग्रांज पॉइंट पर अपनी बस्तियां बसा ली हों। भविष्य के अन्तरिक्ष-यात्री सितारों के सफ़र से लौट कर लग्रांज बिन्दुओं पर बसी बस्तियों में अपने यान उतारेंगे, ईंधन भरवाएंगे, परिजनों के साथ समय बिताएंगे और फिर से, एक अनजान साहसिक सफ़र पर रवाना हो जायेंगे।

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वैसे यह कहानी मैंने आपको इसलिए भी सुनाई है क्यूंकि भारत का भेजा आदित्य सूर्ययान ऐसे ही लंग्राज बिंदु 1 पर स्थित रह कर सूर्य की अंदरूनी और बाहरी सतह का अध्ययन करेगा। लग्रांज-1 इसलिए क्यूंकि यह बिंदु सूर्य और पृथ्वी के बीच में है और यहाँ से सूर्य का बाधारहित व्यू प्राप्त कर अध्ययन करना आसान है।

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भारत को आदित्य-यान के लिए बधाई।

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गर्व है उस युग के साक्षी होने का, जब भारत का स्पेस कार्यक्रम प्रगति के नित नये सोपान छू रहा है।

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– झकझकिया

लेख़क – विजय सिंह ठकुराय

साभार – विजय सिंह ठकुराय

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