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इच्छाओं का अंत कभी नही हो सकता !||Story of Desire in Mahabharat|| Hollywood movie – “In Time” story|| Motivational story||

इच्छाओं का अंत कभी नही हो सकता –

महाभारत की यह कथा अनोखे आधुनिक अंदाज में पढ़िए ।।

बहुत पहले हॉलीवुड की एक फ़िल्म देखी थी ।

नाम था इंटाइम (in time hollywood movie)।

इस फ़िल्म में दिखाया गया हैं कि एक ऐसी दुनिया है, जहां का सारा पेमेंट सिस्टम आदमी के जीवन के समय से चलता है ।। किसके पास जितना अधिक जीवन वर्ष होता है, वह उतना ही अधिक धनवान माना जाता है ।। प्रत्येक का जीवनवर्ष उसके हाथो में अंकित होता है ।।

जैसे हम Google Pay / Paytm आदि से पैसे ट्रांसफर करते है , उसी फ़िल्म में दिखाया गया है अपने जीवन का कुछ समय देकर कुछ भी खरीदना , टेक्सी बुक करना, शॉपिंग करना, जुआ खेलना आदि कार्य कर सकते है ।। यह मान लीजिए जिस तरह हम रुपये के माध्यम से कुछ भी खरीद सकते है , उस फिल्म में दिखाया गया है, पेमेंट का भुगतान रुपयों की जगह अपने जीवन के कुछ समय से करना होगा ।।

वास्तविक जीवन में हम देखे तो यही फैक्ट है ।

हम भी प्रत्येक सुख सुविधाओं का भोग अपने जीवन का कुछ समय देकर ही करते है ।। हम जो पैसे कमाते है, उसमे भी तो समय लगता है ।। समय खर्च करके हम धन का उपार्जन करते है, और उस धन से फिर भांति भांति का भोग भी भोगते है ।। लेकिन मूल में भुगतान तो समय का ही हुआ ।

धन से हम सबकुछ कर सकते है, किंतु कभी भी, किसी व्यक्ति को अपना जीवन नही दे सकते ।। लेकिन उस फिल्म में यह दिखाया गया है, आप अपने जीवन के कुछ साल,महीने, दिन जिसे मर्जी चाहे दान भी कर सकते है ।

फ़िल्म के हीरो को फ़िल्म की शुरुवात में ही 100 साल का जीवन किसी से दान में पाता है ।। बाद में जुए में वह 1000 साल और जीत जाता है ।। इस तरह फ़िल्म कि कथा आगे बढ़ती रहती है ।।

इस फ़िल्म की पटकथा से मुझे महाभारत की एक कथा का स्मरण हो आया ।। राजा नहुष का नाम आपने सुना ही होगा । वह ऐसे महान राजा हुए जिन्होंने धरती के साथ साथ स्वर्ग भी जीता और इंद्र पद तक पहुंचे ।। उन्होंने विवाह भी उर्वसी नाम की स्वर्ग की अप्सरा से किया ।। जिनसे उन्हें ६ पुत्र प्राप्त हुए ।। उनमे से जो सबसे ज़्यादा विख्यात हुए, वे थे ययाति ।।

ययाति को अधेड़ अवस्था में ही शुक्राचार्य का श्राप मिला । वे समय से पहले ही बूढ़े हो गए ।। ययाति शुक्राचार्य के सामने गिड़गिड़ाने लगे … ” अभी तो मेरी भोगो की इच्छा समाप्त ही नही हई है , और आपने मुझे श्राप दे दिया बूढा होने का ।”

अपने दामाद को इस तरह दुःखी देखकर शुक्राचार्य ने उन्हें यह वरदान भी दिया, अगर कोई तुम्हे अपनी युवावस्था दान करना चाहे, तो तुम युवा हो सकते हो ।। अब दूसरा तो अपना समय क्यो दे ? राजा ययाति ने अपने पांच बेटो से ही विनती की की वह अपने 1000 वर्ष अपने पिताको उधार दे दे ।1000 साल बाद मैं तुम्हारा समय वापस कर दूंगा । ययाति के पांच पुत्र थे यदु पुरु द्रुह्मु, अनु एवं तुर्वसु

यदु ने मना कर दिया ।। बाद में दूसरे बेटे तुर्वसु से उसके 1000 साल मांगे, तुर्वसु ने भी मना कर दिया । अनु से मांगा , उसने मना कर दिया । सारे बेटो के मना करने के बाद बचे पुरु ।। पुरु ने अपना 1000 साल का समय अपने पिता ययाति को दे दिया ।।1000 साल तक ययाति ने धर्मपुर्वक शासन किया । भिन्न भोग भोगे ।। 1000 साल पूरे होने के बाद पुरु को बुलाया, और कहा ” अब तुम अपनी युवावस्था वापस ले लो ।। मैं वानप्रस्थ को प्रस्थान करता हूँ ।।

1000 वर्ष की आयु

सम्पूर्ण भोग भोगने के बाद ययाति ने अपने पुत्र से अपना अनुभव साझा किया ….

” इतना भोग ओर ऐश्वर्य भोग लेने के बाद भी मेरी तृष्णा शांत नही हुई । किंतु अब मुझे निश्चित हो गया है की भोगो के भोगने से तृष्णा शांत नही हो सकती ।। आग में जितना घी डालो, लपट बढ़ेगी ही । यही नियम इच्छाओं का है ।। पृथ्वी में जितना भी अन्न धन स्वर्ण और स्त्रियां है, वह भी कामुक पुरुष की विषय वासना को शांत करने में असमर्थ है ।। इसलिए सुख की प्राप्ति भोगो से नही, त्याग से ही होगी ।। दुर्बुद्धि लोग तृष्णा का त्याग कभी नही कर सकते ।। मुझे ही देखो ..विषयो का सेवन करते करते मुझे 1000 वर्ष हो गए, लेकिन यह तृष्णा अब तक शांत नही हुई । आदमी बूढा हो सकता है, लेकिन यह तृष्णा कभी भी बूढ़ी नही होती ।। जब तक प्राण है, तब का तृष्णा की पूर्ति असंभव है ।। तृष्णा का त्याग ही सुख दे सकता है ।।सुख का अन्य दूसरा मार्ग नही है । “

इसी बात को जगतगुरु शंकराचार्य जी ने भी तत्व दर्शन में समझाया ।।

यह कथा लिखते समय जो बातें मेरे मस्तिष्क में घूम रही थी, वो यह है की एक तो हॉलीवुड फिल्मों की अधिकतर कहानियां हमारे पुराणों से मैच करती है ।। समय का लेनदेन ही ययाति और पुरु के बीच हुआ, और समय का लेनदेन ही इस हॉलीवुड मूवी में दिखाया गया है ।।

दूसरा ययाति का अमूल्य अनुभव ।।

अनुभव यह की इच्छाओं की पूर्ति कभी नही हो सकती । इसलिए उचित यही है की हर क्षण केवल भगवान का भजन करो, जिससे कि हमे जीते जी ओर मरणोपरांत परम् शांति प्राप्त हो ।।


साभार-गुरूजी

लेख़क -गुरूजी

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